जायद में मूंग की इन किस्मों का उत्पादन कर किसान कमा सकते है अच्छा मुनाफा
मूंग की खेती अन्य दलहनी फसलों की तुलना में काफी सरल है। मूंग की खेती में कम खाद और उर्वरकों के उपयोग से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। मूंग की खेती में बहुत कम लागत आती है, किसान मूंग की उन्नत किस्मों का उत्पादन कर ज्यादा मुनाफा कमा सकते है। इस दाल में बहुत से पोषक तत्व होते है जो स्वास्थ के लिए बेहद लाभकारी होते है।
मूंग की फसल की कीमत बाजार में अच्छी खासी है, जिससे की किसानों को अच्छा मुनाफा होगा। इस लेख में हम आपको मूंग की कुछ ऐसी उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी देंगे जिनकी खेती करके आप अच्छा मुनाफा कमा सकते है।
मूंग की अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्में
पूसा विशाल किस्म
मूंग की यह किस्म बसंत ऋतू में 60 -75 दिन में और गर्मियों के माह में यह फसल 60 -65 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मूंग की यह किस्म IARI द्वारा विकसित की गई है। यह मूंग पीला मोजक वायरस के प्रति प्रतिरोध है। यह मूंग गहरे रंग की होती है, जो की चमकदार भी होती है। यह मूंग ज्यादातर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में ज्यादा मात्रा में उत्पादित की जाती है। पकने के बाद यह मूंग प्रति हेक्टेयर में 12 -13 क्विंटल बैठती है।
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पूसा रत्न किस्म
पूसा रत्न किस्म की मूंग 65 -70 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मूंग की यह किस्म IARI द्वारा विकसित की गई है। पूसा रत्न मूंग की खेती में लगने वाले पीले मोजक के प्रति सहनशील होती है। मूंग की इस किस्म पंजाब और अन्य दिल्ली एनसीआर में आने वाले क्षेत्रो में सुगम और सरल तरीके से उगाई जा सकती है।
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मूंग की यह किस्म मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। इस किस्म के पौधे लगभग 60 -65 दिन के अंदर कटाई के लिए तैयार हो जाते है। इसकी फलिया पकने के बाद हल्के भूरे रंग की दिखाई पड़ती है। साथ ही इस किस्म में पीली चित्ती वाला रोग भी बहुत कम देखने को मिलता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 12 -15 प्रति क्विंटल होती है।
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मूंग की यह किस्म बनारस हिन्दू विश्वविधालय द्वारा तैयार की गई है, इस किस्म के पौधे पर बहुत ही कम मात्रा में फलिया पाई जाती है। मूंग की यह किस्म लगभग 65 -70 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती है। साथ ही मूंग की फसल में लगने वाले पीले मोजक रोग का भी इस पर कम प्रभाव पड़ता है।
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मूंग की यह किस्म जायद के मौसम में अच्छे से उगाई जा सकती है। इस किस्म की खेती खरीफ के मौसम में भी अच्छे से की जा सकती है। यह किस्म लगभग 70 -75 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। साथ ही यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 8 -10 क्विंटल होती है।
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मूंग की इस किस्म को जायद के मौसम के लिए तैयार किया गया है। इस किस्म के पौधे बुवाई के दो महीने बाद पककर तैयार हो जाते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 10 क्विंटल के आस पास हो जाती है।
पन्त मूँग -1
मूंग की इस किस्म को जायद और खरीफ दोनों मौसमों में उगाया जा सकता है। मूंग की इस किस्म पर बहुत ही कम मात्रा में जीवाणु जनित रोगों का प्रभाव देखने को मिलता है। यह किस्म लगभग 70 -75 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। पन्त मूंग -1 का औसतन उत्पादन 10 -12 क्विंटल देखने को मिलता है।
दुधारू पशुओं को साल भर हरा चारा खिलाने से दूध कारोबारियों में वृद्धि होती है। इसीलिए दुधारू पशुओं को हरा चारा देना चाहिए। हरा चारा ना सिर्फ पशुओं के लिए दूध वृद्धि बल्कि कई प्रकार के विटामिंस की भी पूर्ति करता है। हरे चारे की एक नई लगभग विभिन्न प्रकार की किस्में होती है लेकिन जो किस्में किसान अपने पशुओं के लिए उपयोगी समझता है , वह
गर्मियों के मौसम में पशुओं से ज्यादा दूध प्राप्त करने के लिए उनको मक्का, जौ, गेंहू, बाजरा आदि के चारे देना बहुत ही लाभदायक होता है। क्योंकि गेहूं और मक्का बाजरा आदि में लगभग 35% पोषक तत्व मौजूद होते हैं जिसे खाकर गाय, भैंस भरपूर दूध की मात्रा का उत्पादन करती है।अगर आप मक्का ,बाजरा, जौ इन तीनों में से किसी एक को भी भोजन के रूप में देना चाहते हैं तो कम से कम आपको 35%भाग देना होगा। जिसे खाकर गाय, भैंस पूर्ण रूप से दुधारू का निर्यात कर सकें।
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दुधारु पशुओं में दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए मक्का की खली बहुत ही लाभदायक है क्योंकि मक्का में मौजूद पोषक तत्व आसानी से पच जाते हैं। मक्के की खली भिगोने के बाद काफी फूल जाती है जिससे इसका वजन भी काफी बढ़ जाता है। मक्के की खली को भोजन के रूप में देने से दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन की मात्रा में बहुत बढ़ोतरी होता है। इस तरह से हम हरे चारे के अभाव में दुधारू पशुओं के लिए चारा का इंतज़ाम कर सकते हैं।
साइलेज द्वारा हरे चारे का इस्तेमाल किया जाता है। साइलेज बनाने के लिए हरे चारे और पोषक तत्वों से भरपूर खाद्यानन को अच्छी तरह से मिस किया जाता है। साइलेज की सहायता से पशुओं में दूध देने की क्षमता तेजी से बढ़ती है। इसकी सहायता से हरे चारे काफी लंबे टाइम तक सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।साइलेज की सहायता से हरे चारों में मौजूद पौष्टिक तत्व नष्ट नहीं हो पाते तथा और भी पोषक तत्व की बढ़ोतरी होती रहती है। किसान भाई हरे चारे की प्राप्ति के लिए अपनी फसल की कटाई के दौरान हरे चारे को धूप में सुखाकर अच्छे से रख लेते हैं। ताकि सालभर हरा चारा ना मिलने पर वह अपने पशुओं को